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स्टोरी हाइलाइट्स
- करण जौहर की नई फिल्म के टाइटल पर आ रही प्रतिक्रिया
- क्यों मेंटल इलनेस को सीरियस नहींं लेते लोग
फिल्म निर्देशक करण जोहर ने एक धमाकेदार एक्शन वीडियो के साथ अपनी फिल्म स्क्रू ढीला टाइटल के साथ अनाउंस कर दी है. इस फिल्म के एक्टर टाइगर श्रॉफ (Tiger Shroff) हैं. फिल्म के टाइटल ‘स्क्रू ढीला’ (Screw Dheela) को लेकर देश के मनोचिकित्सक और आम लोग ऐतराज जता रहे हैं. ट्विटर के जरिये डॉक्टरों ने लिखा कि करण जोहर की फिल्म का ये टाइटल मेंटल इलनेस से ग्रसित लोगों का मजाक बनाने वाला है.
इहबास दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश ने लिखा कि क्या आपको लगता है कि करन जोहर को मेंटल इलनेस से संबंधित शब्द स्क्रू ढीला टाइटल से बचना चाहिए. उन्होंने आगे लिखा कि मनोरंजन के नाम पर मेंटल इलनेस का मजाक मत बनाओ.
Do you think #KaranJohar should avoid using derogatory word related to mental illness in movie title #ScrewDheela?
Don’t make fun of persons with mental illness in the name of entertainment.
— Om Prakash, MD (@ompsychiatrist) July 25, 2022
इस पर एक यूजर भूपेश दीक्षित ने लिखा कि मेरा निवेदन है कि इस बारे में शीघ्र ही संज्ञान लेते हुए फिल्म के टाइटल को लेकर CBFC के अध्यक्ष को अपनी आपत्ति दर्ज करवानी चाहिए.
भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी लिखते हैं कि पोस्ट कोविड मानसिक रोगों में 40 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है. लोगों ने जो हालात देखे हैं, किसी ने अपनों को खोया है तो किसी की रोजी रोटी चली गई है. सुसाइड रेट भी 10 प्रतिशत तक बढ़ गया है. ऐसे हालातों में मानसिक स्वास्थ्य समस्या का मजाक बनाना उचित नहीं होगा.
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बता दें कि इससे पहले भी ‘मेंटल है क्या’ टाइटल से फिल्म बनी थी, जिसे विरोध के बाद ‘जजमेंटल है क्या’ टाइटल दिया गया था. डॉ सत्यकांत कहते हैं कि हमारे देश में पागल शब्द को इतना प्रचलित कर दिया गया है कि लोगों को ये महसूस तक नहीं होता कि ये एक गाली नहीं बल्कि एक गंभीर समस्या है जिसका व्यक्ति के सचेतन मन से कोई संबंध नहीं. पागलपन से जुड़ी समस्याएं परिवारों को तोड़ देती हैं. लेकिन इन शब्दों के सर्वग्राही होने के कारण फिल्मों में भी इनका प्रयोग आसानी से दिखता है.
बहुत समय पहले एक पुरानी फिल्म आई थी, ‘पगला कहीं का’. फिल्म का ये टाइटल बताता है कि सिर्फ फिल्म ही नहीं ये वाक्य भी इतना कॉमन है सामान्य बोलचाल की भाषा में कि किसी को कुछ आपत्तिजनक लगता ही नहीं है. समाज को पागल, मेंटल, स्क्रू ढीला, साइको जैसे शब्दों के इस्तेमाल में बहुत संवेदनशील होना पड़ेगा. इन मेंटल इलनेस को हल्केपन में लाना उनके इलाज को प्रेरित नहीं करेगा.
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