मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है. इस दिन व्रत करने वालों को पूरे जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. इस वर्ष यह उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर को होगी. इसी दिन इस लोक का परोपकार करने वाली देवी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन व्रत करके भगवद भजन, कीर्तन करने का विशेष महत्व है.
सतयुग में मुर नामक असुर ने विजय प्राप्त कर इंद्रदेव को उनके पद से हटा दिया. सभी देवता भगवान शंकर की शरण में पहुंचे तो उन्होंने विष्णु जी के पास जाने की सलाह दी. देवताओं ने अपनी समस्या विष्णु जी को बताई तो वह तुरंत ही देवताओं की सहायता करने को आगे बढ़े. उन्होंने धनुष बाण उठाकर तत्काल कई दानवों को अपने बाणों से मार दिया, किंतु वह मुर दानव को न मार सके, वह तो देवताओं के वरदान से अजेय था.
मुर का वध- जब विष्णु जी किसी भी तरह उसे नहीं मार सके तो मुर से युद्ध छोड़कर बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने चले गए. जैसे ही इस बात की जानकारी मुर को हुई तो वह विष्णु जी को मारने वहां पर पहुंच गया. इसी समय विष्णु जी के शरीर से एक कन्या पैदा हुई, जिसने मुर का संहार किया. उस कन्या ने भगवान विष्णु को बताया कि मैं आपके शरीर से ही पैदा हुई शक्ति हूं. इस पर विष्णु जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान दिया, ‘तुम संसार के मायाजाल में उलझे तथा मोहवश मुझे भूले हुए प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम रहोगी. तुम्हारी आराधना करने वाला प्राणी आजीवन सुखी रहेगा और मृत्यु के बाद मेरे लोक में निवास करने का अधिकारी बनेगा.’ वही कन्या एकादशी हुई. वर्ष के 24 एकादशियों में इस एकादशी का विशेष महत्व है. विष्णु जी के शरीर से उत्पन्न होने के कारण ही उत्पन्न एकादशी पड़ा.